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Friday 15 April 2016

सफ़ेद घोड़ा और राजकुमार


सफ़ेद घोड़े और एक राजकुमार
देखे नहीं हकीकत में
बस देखा उन्हें नानी वाली कहानियों में

की आते थे राजकुमार सफेद घोड़ो पर,
ले जाते थे राजकुमारी को उठा घोड़ो पर,
दे जाते थे, रोशनी नए ख्वाबो में
तो भर जाते थे, रंग बेचेन पड़ी रातो मे, 

कितनी चैन की नींद निकल गयी सोने में
लिए ख्वाब, कही दिल के कोनो में,

एक दिन ऐसा आएगा,
सफ़ेद घोड़े पर बैठ कर राजकुमार घर आएगा,
सारी सुनी हुई कहानिया हकीकत में चलेगी
सच में राजकुमार होते हैं, यह बात पता चलेगी,

पर,
कहानिया बस कहानिया होती है
हकीकत मैं कहा मिलते समुन्दर में चमकते मोती है,
न कोई तारा टुटा था कलतक
न ही कोइ खिलौना रूठा आजतक
कितने सफ़ेद घोड़े देखे
पर एक पर भी राजकुमार कभी नही, बैठे,

एक दिन कोई आएगा जरुर, संग उसके माँ बाप लाएगा
११ रूपए, एक साडी एक नारियल, दे कर हाथ में, रिश्ता पक्का कर जाएगा,
लेकर रोका, अगले महीने फिर बारात ले आएगा,
लड़की को बीबी बना संग ले जाएगा,

एक दिन बो भी आया, सच मैं  एक लड़का घोड़ी पर चड़कर उसे लेने आया,
न घोड़ी का रंग सफ़ेद था
न वो राजकुमार के बेष मैं था,
सब कुछ ऐसा ही होता हैं
जितने मुंह उतनी कहानिया होटी हैं,

नानी सुनाती थी, उसे हरदम,  राजा-रानी की कहानी
जब-जब ऊब जाती वो गुडिया रानी
या बिलखती किसी और ख्वाब के लिए
नानी सुना देती सफ़ेद घोड़े और राजकुमार की कहानी,

आज पाता चला सब कुछ कहानी होती हैं,
बचपन की गुड़िया, सफ़ेद घोडा, वो राजकुमार
कुछ भी हकीकत मैं नहीं, बस कुछ लोगो की मुँह जुबानी ही होती हैं |



आरिन J

Monday 4 April 2016

नाकाबिल





नाकाबिल लोग बहुत आवाज करते हैं,
नकामियत की तक्तिया परये ही घिसीपिटी सी,  कलम रगड़ते हैं

अरे वहा मत जाओ,
अरे यह मत खाओ,
तुम नापास हो जाओगे,
जबरन मैं अपने वालीद का दिवाला निकलवाओगे,

वो बोरियत की दोपहर मैं हुक्का पीते
ताश के पत्तो से लड़कर, जितने की हमे सीख देते,

खाली बर्तन सी जिन्दगी, का हवाला देते रहते है,
तो हर एक कदम पर, फाप्तिया कसते रहते है,

सारी परवरिश की बाते, पडोसी के बच्चो मैं ठूसने को बेचेंन बेठे यह लोग
खुद की परवरिस पर कम ही नाकं सिकुड़ते है,

मानो या न मानो
यह नाकाबिल से, नाकाम लोग बहुत आवाज करते है|


आरिन :)

Monday 14 September 2015

हिंदी



मेरे देश की बिंदी हैं, हिंदी
जहा लोग बसते भांति-भांति के
माँ, बहने सजाती माथा, बड़ी टिकी से छोटी–बड़ी बिंदी
बोलती प्यार से तो बड़े दुलार से एक ही भाषा, वो हैं हिंदी

सब भिन्न हैं ढेरो रंगों मैं लिपटे-लिबासो मैं
एक सी सोच हर तकलीफ मैं एक सी आशाओं मैं, बंधे
नहीं बोल पाते एक दुसरे की बोली
तो टूटे शब्द जोडकर बोलते एक ही भाषा, वो हैं हिंदी

समझ की क्रांति सँजोती
महक राष्ट्र की, ह्दय मैं बोती
हिंदी चित्रपट मैं रंग परोसती
मेरी प्यारी भाषा, वो हैं हिंदी

पूरा देश मैं अनेकता, मैं एकता का पाठ पढाती
दो प्रदेशो-दो संस्क्रती की समझ को जोड पाती
मेरी भाषा, वो हैं हिंदी

जब जोड़ना हो दिल इस देश मैं,
चाहे मराठी चाहे पंजाबी
चाहे असामी चाहे कश्मीरी
चाहे कन्नड़ चाहे सिन्धी
अपने लहजो मै तो अपने ढंगों मैं, बोलते एक ही भाषा, वो हैं हिंदी |
 
आरिन रत्नेश सोराठिया

Friday 14 August 2015

बाजारू औरते


वो क्या बुलाते हैं उन्हें,
बालो मैं मोगरे का गजरा लगाती
शाम होते से
टिक के खम्बो से, सडक किनारे खड़ी हो जाती
महकते इतर से उनके जिस्म
बुलाती रहती वो तिरछे नजरो से,
रस्तो पर से गुजरते आदमियों को बिना किसी इल्म
आँखों मैं गहरे काजल छुपाकर रखते उनकी कहानियां
होठो पर रहती हर वक्त मेहरून, लाल सी लालीयां
तो होठो के पीछे  गुस्से मैं छुपी वो बदचलन गलियाँ
हर रात
एक दो नहीं दस-दस आदमियों के बिस्तर पर गिरती वो
तब दो वक्त की रोटी गिरती उनके बच्चो की थालियाँ
चलाते उनके चेहरे पर हाथ
दे जाते गहरे दाग,  खाती पियक्कड़ आदमियों के जूते लात,
वो तंगी वाले आदमी
चप्पल तक लगा जाता उनके माथे
बिगड़ जाते उनके धंधे, कर जाते गरीबी मैं गिले आटे
बड़ी बहादुरी से रातो के अंधेरो मैं खड़ी वो औरते
बाजारों की रोशनी के बंद होते से, भूख से लड़ी वो औरते
बचने-बचाने को कुछ नहीं बचा यहा तक की आबरू उन औरतो की
शरीफ मोहल्लो मैं नहीं रहती इसलिए कहते बाजारू-जात उन औरते की
खा जाते समाज के अंदर पैदा हुए, शरीफ आदमी उन औरतो की आबरू
पहनकर वापिस अपने पतलून, खत्म कर तमाशे, बुलाते उन औरतो को बाजारू
वो रात के अंधेरो मैं हारी हुई औरते

वो समाज की गंदगी ढोती,  बाजारू औरते |

Wednesday 12 August 2015

बचपन की अमीरी


सोने की अट्ठन्नी,, , वो चांदी की चव्वनी
जैसे सारे ख्बाब खरीदने का रखती थी रुबाब,
बचपन की अमीरी, वो पुराने टूटे खिलोनों का खजाना
रेडिओ पर सुना वो पहला-पहला गाना
कुछ भी टुटा-फूटा सा गुनगुनाना,  पूरा अंतरा याद न होने पर कुछ भी गाना,

वो बचपन की अमीरी, जाने कहा रुखसत हो गई
जब हमारे भी पानी मैं जहाज चला करते थे,

खींच के सांसे, मींच के आँखे
हवा फुग्गो मैं भरा करते थेo,


उन दिनों तारो के दरमियाँ हमारे भी गुब्बारे उड़ा करते थे |

Saturday 8 August 2015

मन मारता मैं



दुकान पे जब खड़ा होता
घर से सूची की कतार हाथ ले लेता |
आखिर पहुँचते से कतर देता सूचि की लम्बी जुबान,
सिर पर पसीना लाती, वो आनाज की महंगी दुकान |
भैया थोड़ी शक्कर देना
चासनी थोड़ी पिछले त्यौहार के बचे-कुचे बतासो की घोलकर पीना |
अनाज के खाली बर्तन करने लगते मेरे घर मैं अजाने
वो हवाओ का मुशाफिर खाना, बनी मेरे खाली कमरों की मचाने |
मन मर गया मेरा
किसने उसकी हत्या की
मन भर गया मेरा
गनीमत उसने आत्महत्या की |
महंगे परिधानों मैं लिपटा मन
कुतरन तक नही खरीद पाता मेरा मन
खुद को बेंचू तो भी कोई मोल नहीं लगाता
महंगे दुकानों मैं कभी-कभार घुस जाऊ तो
वहां का शीशा मुझे मुंह चिढाता
रास्तो पर आँख बचाता मैं
महंगे हो गए ख्वाहिशो से आँख चुराता मैं
खुद-को-खुद की औकात दिखाता  मैं |

आरिन J

Sunday 26 July 2015

विश्व हेपेटाइटिस दिवस २८ जुलाई


मैंमैं यहाँ आकड़ो के साथ अपना लेख प्राम्भ करना चाहता हूँ, विश्व स्वस्थ्य संगठन(वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन) के अनुसार ४०० मिलियन (४० करोड़) लोग हेपेटाइटिस बी. और सी से ग्रसित हैं और इस बीमारी के साथ जी रहे हैं, प्रतिबर्ष १.४० मिलियन(१४ लाख) लोगो की मृत्यु हो जाती हैं, और यह सब होता हैं केवल इस बीमारी की पूरी तरह जानकारी और रोकथाम के तरीके का पूरी तरह से न पता होने के कारण, हम व्यापक तौर पर समाज मैं इस के खिलाफ जानकारी और समझ को फैलाकर प्रतिदिन औसतन ४००० जिन्दगिया बचा सकते हैं |

इसे २८ जुलाई को मनाने का मुख्य मकसद समाज मैं सही जानकारी फैलाना हैं ताकि हम लोगो को सही समय पर करीबी अस्पताल और उपचार केन्र्द पंहुचा कर उनकी जाँच करवा पाए, ठीक ५ बर्ष पहले २०१० मैं विश्व स्वास्थ संगठन ने कुछ खास बीमारियों के प्रति चिन्तन पश्चात् हेपेटाइटिस से होने वाली मौतों पर विश्लेष्ण किया, प्रतिदिन ४००० लोग पुरे विश्व मैं अपनी जान गवां देते हैं, तो उन्होंने व्यापक कदम उठाते हुए, सही जानकारी और उपचार को लोगो तक पहुचाने के लिए विश्व हेपेटाइटिस दिवस को २८ जुलाई को मनाने की घोषणा की, सामाजिक मिडिया के बढ़ते हुए प्रयोग को देखते हुए |
विश्व स्वस्थ्य संगठन ने ट्विटर एक मुहीम चलायी हैं, जिसका नाम “ हर एक मौत के लिए एक आवाज़”(voice for every death)  दिया गया हैं, आप अपनी फोटो और अपनी आवाज़ को हाश्ताग(#) के साथ #4000वॉइसेस (#4000voices) कर के भेज सकते हैं, सीधे तौर पर इस मुहीम का मतलब इस दिन मरने वाले ४००० लोगो की आप आवाज़ बनकर, कल परसों, इस महीने, इस पुरे बर्ष और आने वाले सालो मैं प्रति दिन हेपेटाइटिस से मरने वालो की संख्या को कम करते हुए हम पूरी तरह इस बीमारी का नामोनिशान मिटा सकते हो |
हेपेटाइटिस से हो रही मौतों के मामलो मैं, हमारा भारत देश, चीन के बाद दुसरे पायदान पर हैं |

आखिर हेपेटाइटिस क्या हैं ?
सही तौर पर आप के फेफड़ो पर सुजन के साथ हेपेटाइटिस की शुरुआत होती हैं, इसको होने के बहुत से कारण हैं जिनमे शराब, ड्रग्स से लेकर गन्दा पानी और दूषित खाने तक से हो सकता हैं, बाद मैं यह फेफड़ो के कर्क रोग मैं तब्दील हो सकता हैं, मुख्यत: हेपेटाइटिस के अलग-अलग विषाणु आते है जिन्हें  ए, बी, सी, डी, इ के अंर्तगत विभाजित किया गया हैं,
हेपेटाइटिस ए- मूलतः यह विषाणु  संक्रमित व्यक्ति और दूषित खाना, दूषित पानी के कारण फैलता हैं इसके सब से अधिक मरीज ऐसी बस्तियों मैं पाय जायंगे जहा साफ सफाई का पूर्णत ध्यान न रखा जाता हो|
हेपेटाइटिस बी- यह विषाणु संक्रमित खून, वीर्य और मुख्य तौर पर सम्भोग के द्वारा भी फैल सकता है|
हेपेटाइटिस सी- इसका विषाणु संक्रमित खून से ही फेलता, हैं मुख्य तौर पर इंजेक्सन द्वारा, ख़ास तौर पर ड्रग्स के आदि लोगो मैं भी यह पाया जाता हैं |
हेपेटाइटिस डी-पहले से हेपेटाइटिस बी से संक्रमित लोगो मैं हेपेटाइटिस डी की सम्भावना जयादा हैं और यह पहले से भी घातक हो सकता हैं|
हेपेटाइटिस इ- इसका मुख्य कारण दूषित खाना और दूषित पानी ही हैं |
समस्त हेपेटाइटिस विषाणु समय रहते, दवा और टीका लेने पर नियन्त्र मैं लाये जा सकते हैं, बस समय रहते हमें अपने करीबी उपचार केन्द्रों मैं पहुचना होगा|


अंत मैं इतना कहना चाहूँगा हूँ की विश्व स्वास्थ संगठन की मुहीम का हिस्सा बनकर आज हम एक साथ खड़े हो और हेपेटाइटिस को जड़ से मिटाने की शपथ ले, अब हम अपने घरो, अपने मोहल्लो, अपने शहरो से यहाँ तक की आपने देश से अब कोई और मौत नहीं होने देंगे |
धन्यवाद
आरिन

समस्त आकडे और बीमारी की जानकारी, www.who.int से ली गई हैं |